
21 Feb मैं ख़ुद ही अपनी तलाश में हूँ मेरा कोई रहनुमा नहीं है
मैं ख़ुद ही अपनी तलाश में हूँ मेरा कोई रहनुमा नहीं है
वो क्या दिखाएंगे राह मुझको जिन्हें ख़ुद अपना पता नही है
मसर्रतों की तलाश में है, मगर ये दिल जानता नहीं है
अगर ग़म-ए-ज़िन्दगी न हो तो ज़िन्दगी में मज़ा नहीं है
बहुत दिनों से मैं सुन रहा था सज़ा वो देते हैं हर ख़ता पर
मुझे तो इसकी सज़ा मिली है के मेरी कोई ख़ता नहीं है
शऊर-ए-सजदा नही है मुझको तू मेरे सजदों की लाज रखना
ये सर तेरे आस्ताँ से पहले किसी के आगे झुका नही है
ये इनके मंदिर, ये इनके मस्जिद, ये ज़रपरस्तों की सजदागाहें
अगर ये इनके ख़ुदा का घर है तो इनमें मेरा ख़ुदा नहीं है
दिल आईना है, तुम अपनी सूरत, सँवार लो और ख़ुद ही देखो
जो नुक्स होगा दिखाई देगा ये बेज़ुबाँ बोलता नहीं है
ये आप नज़रें बचा बचा कर बग़ौर क्या देखते हैं मुझको
तुम्हारे काम आ सके तो ले लो हमारे ये काम का नहीं है
– राज़ अलाहाबादी
रहनुमा = पथ-प्रदर्शक, मार्गदर्शक
मसर्रतों = ख़ुशियों
ग़म-ए-ज़िन्दगी = ज़िन्दगीके दुःख
शऊर-ए-सजदा = सजदा करने का तरीक़ा/ ढंग/ तहज़ीब/ तमीज़/ शिष्टाचार
आस्ताँ = चौखट, दहलीज़
ज़रपरस्तों = पैसे को पूजने वाले, लोभी