शोध में डेटा का बहुत महत्त्व होता है । कभी हम एनेकडोट तो कभी वृहद् डेटा साइज की मदद से कुछ कहने की कोशिश करते हैं। किन्तु इस प्रक्रिया में जवाबदाता काफ़ी मायने रखता है – हम उनसे सवाल करते समय इनसाइडर और आउटसाइडर के डिबेट से तो जूझते ही हैं, कभी कभी जवाबदाता बहुत बार सर्वे की प्रक्रिया में भाग लेता-लेता इतना समझदार हो जाता है कि अपने फ़ायदे और नुक़सान को देखते हुए अपना जवाब फ्रेम करता है । ख़ैर इन सवालों पर गौर करना तो ज़रूरी है हीं यह भी ज़रूरी है कि आप ज़वाबदाता के प्राइवेसी और भावनाओं का ख्याल तो रखें हीं, उनके जवाबों को भी ध्यानपूर्वक सुने।
ख़ैर आज मैंने सुबह – सुबह ऑटो की सवारी की । हमारी यात्रा कुछ नेगोशिएशन के साथ शुरू हुई और फिर शुरू हुई एक दूसरे के बारे में जानने की कोशिश। इस प्रक्रिया मे कई जगह गंभीर संवादों से सामना हुआ जो एक एक आम नागरिक की राजनीतिक समझ की ओर इशारा करती है —जैसे मैंने पूँछा -अभी कैसा माहौल है ? सुना आज एक जगह पर कुछ क्लैश हो गया है और वहाँ आज कॉलेज और युनिवर्सिटी बंद कर दिये गये हैं । ऑटो चालक ने बिना देर किए जवाब दिया – जब तक चुनाव नहीं निपट जाता है ये सब चलता रहेगा।
बात आगे बढ़ी और ऑटो में मीटर ना होने और मीटर से ना जाने की बात शुरू हुई । ऑटो चालक ने कहा – देखिए, बहुत बार हम मीटर से जाना चाहते हैं तो सवारी नहीं जाती है और जिसे मीटर से जाने की आदत नहीं है और किराया ज़्यादा आ जाता है तो यात्री बढ़ा किराया देने से मना करता है । उसने ये भी बताया कि कैसे एक यात्री ने उसका ही चुना लगा दिया और उस से 500 रुपये ठग लिये । ऐसा लगा जैसे इस शहर मे सब एक दूसरे को ठगने में लगे है और सबकी बारी ठगने और ठगाने जी आती है । और कुछ साल पहले मैंने खुद से लिखा लाइन मन ही मन खुद के लिए पढ़ लिया:
मुरदों के शहर मे जज़्बात कहाँ ढूंढते हो,
यहाँ सब कुछ है बिकता, प्यार कहाँ ढूंढते हो ।
ख़ैर हमारी यात्रा एक अच्छे नोट पर ख़त्म हुई – एक दूसरे से दुबारा किसी मोड़ पर मिलने की आरज़ू के साथ।