31 Jul ठहरिए, बतियाइए और आगे बढ़िए!
Posted at 18:57h
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by Sujeet Kumar
कहते हैं अगर दुनिया को समझना है तो या तो यात्रा कीजिए या किताबें पढ़िए। और अगर आप दोनों कर सकते हैं तो सबसे बेहतर।पिछले तीन सालों से मैं लगभग घर से ही काम कर रहा हूँ और यदा कदा ही अपने वर्क स्टेशन या किसी कोवर्किंग स्पेस में जाकर काम करता हूँ। लेकिन सच कहूँ तो मुझे कार्यालय जाकर काम करना पसंद है। ऑफिस जाने की प्रक्रिया में मैं बहुत कुछ सीखता हूँ जैसे कि आज ।
आज मैं 8 से पहले ही अपने वर्कप्लेस के लिए निकल लिया जो बाक़ी के दिनों से काफ़ी पहले था वरना मैं 9 से 10 के बीच ही निकलता हूँ । छत्तरपुर मेट्रो से हौज़ ख़ास मेट्रो पहुँचा और वहाँ से उतरकर बोटैनिकल गार्डन के लिए आगे बढ़ रहा था । तभी एक आदमी बीच में रुका हुआ असमंजश मे दिखा – वह कुछ पूछने की कोशिश करता तब तक रॉकेट की गति से बढ़ता महामानव आगे निकल पड़ता।
अब मेरी भी बारी आ चुकी थी वहाँ से गुजरने कि लेकिन तब तक मैं अपनी चाल कम कर चुका था और उस सज्जन के पास जाकर तो रुक ही गया। वह धीरे से पूछा – ग्रेटर कैलाश किधर से जाएँगे , मैंने बोला आप सीधे चलते चलो , मैं भी उधर ही जाऊँगा । फिर भी वह रुक-रुक कर जा रहा था और ख़ासतौर पर जब उसे एस्कलेटर से नीचे आना था । उसकी पत्नी को एस्केलेटर से उतरने में डर लग रहा था उसने उसे अपने हाथों का सहारा दिया और मुश्किल को आसान कर दिया.
फिर हमारी बातचीत शुरू हुई और मैं पूछ बैठा आप कहाँ से है – जवाब मिला: मैं बिहार से हूँ और 2012 -2013 तक मैं इसी इलाक़े में काम करता था लेकिन अब मैं नोएडा शिफ्ट हो गया हूँ और मैंने पत्थड़ की ख़ुद की फ़ैक्टरी लगा ली है । पहले मैं ठेकेदार के अंदर काम करता था और पैसे भी बहुत कम मिलते थे ।
फिर मैंने पूछा इधर कैसे आना हुआ — पत्नी बीमार है और ग्रेटर कैलाश के पास एक गुरुद्वारा द्वारा हॉस्पिटल चलाया जाता है वहीं दिखाने आया हूँ पत्नी को । फिर मैंने पूछा , वहाँ अच्छा इलाज होता है क्या ? थोड़ा विश्वास के साथ फिर जवाब मिला, अच्छा इलाज होता है इसलिए तो आया हूँ उतने दूर से । जब मैं इधर रहता था तो वहीं दिखाता था । जब मैं इधर से गया था तो मेट्रो नहीं था….अब सब कुछ बदला-बदला सा लग रहा है। मैंने भी कहा कि कभी कभी मुझे पता नहीं चलता और मैं दूसरे से पूछ लेता हूँ।
बात करते करते अब हम बोटैनिकल गार्डन जाने वाली लाइन पर पहुँच गये और हम उसमे सवार हो गये। वो दोनों ग्रेटर कैलाश उतर गये और मैं ट्रेन के साथ आगे के लिए चल पड़ा।
यह छोटा सा सफर मुझे कई सीख और सवालों के साथ छोड़ गया।
अगर आप यहाँ तक आ गये हैं तो आपने पूरी कहानी ज़रूर पढ़ी होगी। व्याकरण और शब्दों की त्रुटियाँ के लिए क्षमा चाहता हूँ। शुक्रिया!