सवाल तेर भी बहुत हैं
सवाल मेरे भी बहुत हैं
तुम किनारे के पास हो
मै बीच मझदार में हूँ
तुम सियासत करते हो
मै उसका शिकार बनता हूँ
तेरी हर आवाज़
मेरी इन्तहा लेती है
और मै वक़्त का इंतज़ार करता हूँ
कब जागेंगे हम
तेरे जवाब में
कब आएगी शांति इस बाज़ार में
चौराहे से डरकर गुजरना
मुझे गुलामी दीखता
लेकिन लाठियों का डर
बोलने से चुप कर जाता है
ये वतन और देशभक्ति ढोंग लगता है
अपने वतन वाले हर बार रुलाते हैं
जल जल कर जीता हूँ
किनारे की तलाश में
पुराना साल बिता रहा है
एक आवाज़ के साथ
नकाब पोश चेहरे
खून से लथपथ हाथ
मौत के सौदागर
सब बेनकाब हो गए हैं
उम्मीद हैं नया साल
न्याय और इंसानियत का होगा
ये चेहरे अपनी जमीन
खोने को मजबूर
होंगे हम अमन और चैन लायेंगे
इसी उम्मीद से
नया साल मनाएंगे|