कहाँ जा रहे हैं हम?

एक तरफ हम अपनी प्रगतिशीलता का बखान करने में लगे हैं, तो दूसरी तरफ पागल भीड़ निहत्थे और निर्दोष लोगो को मारने में लगी है|

भारत में लगातार ऐसी घटनाएं देखने को मिल रही है| किन्तु, यह केवल भारत जैसे प्रगतिशील देश में नहीं हो रहा है| विकसित देश अमेरिका में आये दिन किसी हथियार बंद आदमी द्वारा निहत्थे लोगो पर गोलियां चलाने की खबरें आती रहती है|

गल्ली-मुहल्लों, चौक-चौराहों और टेलीविज़न पर लगातार ऐसी ख़बरों की चर्चा है| किन्तु, सवाल यह कि यह हो क्यों रहा है? इसके पिछे का कारण क्या है? जब हम एक तरफ विकसित होने का दंभ भड़ते हैं, वही दूसरी तरफ इसी सभ्यता का आदमी इतना क्रूर और राक्षसी कैसे हो जाता है|

इन सब के पीछे बहुत से कारण हैं लेकिन जो सबसे अहम् कारण दिखता है, वो है मनुष्य के अंतर-संबंधो में गिरावट| आज हम मोबाइल और गाड़ी से मुहब्बत के चक्कर में अपने परिजनों और परोसियों से बात नहीं कर पाते या उनकी कोई अहमियत ही नहीं है| माँ को सिर्फ मदर्स डे पर याद करते है और पिता को फादर्स डे पर| बहने अपने भाइयों को अब केवल राखी के दिन ही याद करती है| ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जो हमारे आधुनिक होने के प्रमाण हैं|

मेरे कहने आशय है कि हमारे बीच के वार्तालाप और सुख-दुःख साझा करने का चलन धीरे-धीरे सिकुड़ता जा रहा है और लोग एक दायरे के अन्दर सीमित हो रहे हैं| वो तब तक नहीं बोलते जब तक वो सुरक्षित हैं लेकिन हमें यह समझना  चाहिए को वो पागल भीड़ या गोलियां चलाने वाला सख्स हमें भी कभी-न-कभी प्रभावित करेगा| ये वैसे ही है जैसे सुदूर देशो का प्रदुषण हमारे देश के जलवायु को लगातार प्रभावित कर रहा है|

समस्याएं अनंत है किन्तु इसका समाधान है| आप सोचे की आज आप गर्मी से बचने लिए एयर कंडीशन का इस्तेमाल करते हैं लेकिन क्या आप यह भी सोच रहे है कि कभी न कभी हमारे आस-पास का वातावरण ऐसा हो जाएगा कि यह एयर कंडीशन भी अपना काम नहीं कर पायेगा|

ठहरिये, सोचिये और फिर आगे बढिए| एक बार यह जानने और सोचने की कोशिश कीजिये कि आपका काम कैसे केवल आपकी प्रगति नहीं बल्कि एक सभ्यता और समाज की प्रगति सुनिश्चित करता है|