सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता

मैंने अपनी उम्र के ढलान के साथ यह महसूस करना शुरू किया कि हिंदी भाषी क्षेत्रो से आने वाले गरीब मध्यमवर्गीय परिवार को न तो अच्छी अंग्रेजी आती है और न ही अच्छी हिंदी| मिलाजुलाकर भाषा ज्ञान में हम कमजोर ही रहते हैं|मेरी भी  कुछ ऐसी ही हाल है| हालांकि मुझे इस कमी का एहसास होने के बाद, मै अपनी हिंदी और अंग्रेजी दोनों में सुधार कर रहा हूँ | मुझे अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओ से लगाव है| साथ ही साथ मुझे कोई अन्य भाषा सिखने से गुरेज नहीं है, जैसे तेलगु, बंगाली, मलयाली, उर्दू, इत्यादि| मेरी भविष्य की यह योजना है कि मै इन सुन्दर भाषाओ को सिखना शुरू करूँ| फिलहाल, आज मै आपके साथ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के द्वारा लिखित कविता साझा कर रहा हूँ, जिसका शीर्षक है – तुम्हारे साथ रहकर|

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गयी है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।

हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने छोटे हो गये हैं
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख
आशीष दे सकता हूँ,
आकाश छाती से टकराता है,
मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे महसूस हुआ है
कि हर बात का एक मतलब होता है,
यहाँ तक की घास के हिलने का भी,
हवा का खिड़की से आने का,
और धूप का दीवार पर
चढ़कर चले जाने का।

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे लगा है
कि हम असमर्थताओं से नहीं
सम्भावनाओं से घिरे हैं,
हर दिवार में द्वार बन सकता है
और हर द्वार से पूरा का पूरा
पहाड़ गुज़र सकता है।

शक्ति अगर सीमित है
तो हर चीज़ अशक्त भी है,
भुजाएँ अगर छोटी हैं,
तो सागर भी सिमटा हुआ है,
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है,
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है।